हाल ही में इंडस एक्शन की दिल्ली की टीम ने प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (पीएमएमवीवाई) के कार्यान्वयन को समझने के लिए एक क्रियात्मक अनुसंधान (एक्शन रिसर्च) की पहल की। यह रिसर्च दिल्ली राज्य में पीएमएमवीवाई के कार्यान्वयन की सटीकता और दक्षता को बेहतर बनाने की दिशा में एक प्रयास है। दिल्ली के टीम साथी वाग्मी और सिमी ने इस रिसर्च के लिए एक प्रभावशाली सर्वे डिज़ाइन किया जिससे प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना में कार्यान्वयन गैप का पता लगाया जा सके।
इससे पहले की हम आगे बढ़ें,थोड़ा पीएमएमवीवाई के बारे में जान लेते है। पीएमएमवीवाई को भारत सरकार द्वारा जनवरी 2017 में निम्न उद्देश्यों के साथ लॉन्च किया गया था:
1. काम करने वाली महिलाओं की मजदूरी के नुकसान की भरपाई करने के लिए मुआवजा देना और उनके उचित आराम और पोषण को सुनिश्चित करना।
2. गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के स्वास्थ्य में सुधार और नकदी प्रोत्साहन के माध्यम से अधीन-पोषण के प्रभाव को कम करना।
दिल्ली में एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) के अंतर्गत 10 प्रोजेक्ट क्षेत्रों में फील्ड विजिट्स के द्वारा यह रिसर्च किया गया। मुझे और मेरी टीम मेंबर – मीनू दीदी को सर्वे के लिए दो आईसीडीएस प्रोजेक्ट्स विजिट करना था – वज़ीरपुर और सीमपुरी । कोविड-19 के वजह से थोड़ी हिचक सी थी कि क्या हमें बाहर जाना चाहिए या नहीं; लेकिन हम चल पड़े सारे सावधानियों के साथ।वजीरपुर जाना आसान था कैब या ऑटो की मदद से; मेरे घर – रोहिणी- से ज्यादा दूर भी नहीं था। लेकिन सीमापुरी बहुत दूर था – उत्तरी पूर्वी दिल्ली, एक दम बॉर्डर पर।
लॉकडाउन के समय से हमारा बाहर जाना ना के बराबर था;लगा बाहर भी लोग ज्यादा नहीं होंगे। लेकिन मैं और मीनू दीदी बाहर का नज़ारा देख कर आश्चर्य में थे। सब कुछ सामान्य सा प्रतीत हो रहा था – लोग, मार्किट, बस, 2 व्हीलर्स, साइकिल रिक्शा आदि। और तो और बहुत सारे लोग बिना मास्क के भी थे! ताज्जुब भी हो रहा था और दुःख भी; समझ भी आ रहा था कोविड-19 के केस क्यों बढ़ रहे हैं।
इन सब स्थितियों के बावजूद सर्वे के दौरान हमने अपने भीतर एक नयी स्फूर्ति और ऊर्जा महसूस की। इसका कारण था वे महिलाएं जिनसे हम मिले – चाइल्ड डेवलपमेंट प्रोजेक्ट ऑफिसर(सीडीपीओ) , सुपरवाइज़र्स, आँगनवाड़ी के कुछ कार्यकर्ता , आशा कार्यकर्ता, और खास कर महिलाएं जो पहली बार माँ बानी थी या बनने वाले थे – पीएमएमवीवाई के लाभार्थी।
कोविड-19 की वर्त्तमान समस्या के वजह से आंगनवाड़ी में प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल एवं शिक्षा एवं मिड डे मील योजना नहीं चल रहे हैं। लेकिन दिल्ली सरकार ने आंगनवाड़ी के बच्चों और गर्भवती/स्तनपान कराने वाली महिलाओं को घर पर न्यूट्रिशन किट (सूखा खाना -चना , दलीय, गुड़) पहुँचाने का बीड़ा उठाया। हमारे सीमावर्ती वर्कर्स यानी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने बिना किसी हिचक के न्यूट्रिशन किट सारे गर्भवती/स्तनपान कराने वाली महिलाओं को उनके घर तक पहुंचा रहे थे। साथ साथ उसकी रिपोर्ट भी ऐप में भर रहे थे। आशा और एएनएम कार्यकर्ता दोनों डिस्पेंसरी में उपस्थित थे। और पता चला की लॉकडाउन के समय में भी डिस्पेंसरी खुला था और वो ड्यूटी पर थे। वज़ीरपुर डिस्पेंसरी में पता चला की डॉक्टर इंचार्ज को भी एक दिन पहले कोविड हुआ है। अपने डर के वजह से मुझे अपने आप से थोड़ा शर्म महसूस भी हुआ लेकिन साथ ही मेरा सर गर्व से ऊँचा हो गया इन कार्यकर्ताओं के साहस और मनोबल को देखते हुए।
इस तस्वीर में: वज़ीरपुर प्रोजेक्ट -सुपरवाइज़र रश्मि जी और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता परबेष जी के साथ वार्तालाप करती इंडस ऐक्शन टीम (गायत्री और मीनू दीदी)। दिनांक: 8 सितम्बर 2020
कुछ बातचीत
मीनू दीदी: क्या प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना आपके लिए लाभकारी है?
महिला: है तो! लेकिन आपको नहीं लगता दो बच्चों के लिए होना चाहिए ? सरकार कहती है ‘हम दो और हमारे दो’,लेकिन योजना सिर्फ पहले बच्चे के लिए है। आप बतायें क्या दूसरा बच्चा ना करूँ?
*इस योजना के अंतर्गत गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को केवल पहले जीवित बच्चे के जन्म के दौरान लाभ मिलता है । इस नियम के अनुसार दूसरे बच्चे के लिए कोई आर्थिक सहायता नहीं है। इसके अलावा हमारे समाज में महिला की क्या स्थिति है कि वह फैसला कर सके उसको कितने बच्चे करने चाहिए ? सामने वाले के जवाब ने मुझे वाकई हमारे सरकार की नीति और सामाजिक संरचना के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया।
मीनू दीदी: क्या प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना से महिलाएं आपके इलाके में खुश हैं और आसानी से उनका रजिस्ट्रेशन हो जाता है ?
आईसीडीएस कार्यकर्ता: हाँ खुश हैं पर उन महिलाओं का क्या जो अलग रह रही हैं (तलाक या ससुराल में किसी झगडे के वजह से)। ऐसे महिलाओं के पति या ससुराल वाले आदमी का आधार कार्ड नहीं देते पीएमएमवीवाई के आवेदन के लिए; 10-15% ऐसे महिलाएं हैं हमारे जानने में। योजना औरत के हित में उसके स्वास्थ्य, जच्चा – बच्चा के लिए है फिर उसका आधार कार्ड काफी होना चाहिए ना?
*पीएमएमवीवाई के आवेदन के लिए माता एवं पिता दोनों का आधार कार्ड का होना आवश्यक है। हम ऐसे दो महिलाओं से मिले जो ज़रूरतमंद और योजना के पात्र भी थे, लेकिन उनके पास उनके पति का आधार कार्ड नहीं था। घरेलू झगड़ों के वजह से उनके पति आधार कार्ड की कॉपी देने से आनाकानी कर रहे थे। ऐसे मामलों में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता महिला के पति से भी बात करने की कोशिश करती हैं, पर ज्यादातर लोग नहीं मानते।आदमी के लिए अपने पत्नी पर दबाव डालने का यह एक तरीका है जिससे वह घर वापस आ जाएँ।
मीनू दीदी: आप सब कहाँ तक पढ़े लिखे हैं? आंगनवाड़ी के अलावा भी तो कोई और नौकरी कर सकते हैं? यहाँ नौकरी क्यों करते हैं?
अंगनवडी कार्यकर्ता समूह: हमें यहाँ इस इलाके में काम करते हुए 10 साल के आसपास हो गया है। समुदाय में हमें बहुत सम्मान के दृष्टि से देखा जाता है। घर पर भी हमारी एक पहचान है। अच्छा लगता है बच्चों के लिए और समुदाय में लोगों के लिए काम करना। हमारी मेहनत की वजह से डिपार्टमेंट में भी हमको सराहा जाता है दीदी।
*आईसीडीएस योजना के तहत आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को स्वैच्छिक सामाजिक कार्यकर्ताओं के रूप में देखा जाता है, न की कर्मचारियों के रूप में। उन्हें योजना के तहत प्रति माह मानदेय के रूप में एक निश्चित राशि दी जाती है, जो प्रत्येक राज्य में भिन्न होती है। इतने पढ़े लिखे होने के बावजूद यह सराहनीय है कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता अपने कर्तव्य के प्रति इतना प्रतिबद्ध और समर्पित हैं।
गायत्री: आपने कैसे अपने प्रोजेक्ट में पीएमएमवीवाई के कार्यान्वयन में सुधार लाया?
सीडीपीओ: मैंने अपने सुपरवाइजर्स से बात की और समझाया की सारे आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं पर एक साथ फोकस करना मुश्किल है ।10-10 के टोली को फोकस करो, और रोज़ करो; उनके साथ फॉलो-अप करो लगातार एक हफ्ते के लिए। उससे उनको प्रोत्साहन मिलेगा की उनके काम पर उनके अफसर इंटरेस्ट ले रहे हैं और सपोर्ट कर रहे हैं। यह स्ट्रेटेजी मेरे टीम के साथ काम आया और हम बदलाव ला सके।
*एक आंगनवाड़ी सुपरवाइजर के अंडर 25-30 आंगनवाड़ी कार्यकर्ता होते हैं, जिन्हें वो सुपरवाइज़ करते हैं। कभी कभी स्टाफ की कमी होने के वजह से सुपरवाइज़र को 50-60 आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को मैनेज करना पड़ता है। ऐसे स्थिति में ज्यादातर सुपरवाइज़र का फोकस सिर्फ डे-टुडे ट्रबल शूटिंग में चला जाता है । सीडीपीओ टीम लीडर का काम करते हैं और गाइड करते हैं। पूर्ण समर्पण के साथ इस विशेष अधिकारी ने उपर्युक्त रणनीति पर काम किया है और और पहले 30% की तुलना में 65% कार्यान्वयन सफलता प्राप्त की।
ये कुछ बातचीत और सभी के आव-भाव ने मुझे और मेरे साथी मीनू दीदी को काफी प्रेरित किया कि हम ठीक से इन तथ्यों को हमारे टीम के साथ साझा करें।आगे जाकर हमारी टीम सारे सर्वे और अनुभवों का विश्लेषण करके दिल्ली बाल आयोग के समक्ष सभी तथ्यों को सुझाव के साथ प्रस्तुत करेगी; जिससे सरकार को अगले चरण के लिए मौजूदा और नए निर्णय लेने में मदद मिलेगी।